
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 17 जुलाई को एक्स पर ऐलान किया कि 1 अगस्त 2025 से हर घरेलू उपभोक्ता को 125 यूनिट बिजली मुफ्त मिलेगी। इसका लाभ 1 करोड़ 67 लाख परिवारों को मिलेगा।
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इससे उन लाखों गरीब और निम्न-मध्यम वर्गीय परिवारों को राहत मिलेगी, जिनकी मासिक बिजली खपत 125 यूनिट से कम है। यानी, एक तरफ राहत, दूसरी तरफ वोटों की गारंटी।
कितनी होगी आम आदमी की बचत?
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ग्रामीण इलाकों में:
100 यूनिट पर पहले बिल होता था ₹625 (बिना सब्सिडी)।
अब बिल = ₹0, बचत = ₹625 तक! -
शहरी उपभोक्ताओं के लिए:
100 यूनिट पर पहले बिल ₹610 से ₹757 तक।
अब बिल = ₹0, बचत = ₹610-₹757/माह।
राजनीति की रौशनी में ये स्कीम
जब आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में 200 यूनिट और पंजाब में 300 यूनिट बिजली फ्री दी, तो विरोधियों ने “रेवड़ी कल्चर” का तंज कसा। अब जब नीतीश कुमार ने बिहार में वही कार्ड खेला, तो सवाल उठता है – “क्या अब ये बिहार की राजनीति का नया नॉर्मल बन जाएगा?”
ग्रामीण वोटर्स का ‘स्विच ऑन’
बिहार के ग्रामीण इलाकों में बिजली की खपत शहरी क्षेत्रों की तुलना में कम है। लाखों BPL परिवारों की खपत 50 यूनिट/माह से भी कम होती है। तो उनका बिजली बिल अब पूरी तरह जीरो!
नीतीश जी ने जैसे ही “बिजली फ्री” कहा, गांव वालों ने भी जवाब दिया –
“अब तो वोट भी फ्री फायर मोड में देंगे!”
बैकअप प्लान: सोलर पॉवर
नीतीश सरकार अगले 3 सालों में हर घर की छत पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने की भी योजना बना रही है। यानी जनता को फ्री बिजली, सरकार को फ्यूचर में राहत – एक तीर, दो शिकार!
मास्टरस्ट्रोक या पावरकट?
नीतीश कुमार का यह कदम एक तरफ जहाँ लोगों को आर्थिक राहत देगा, वहीं विपक्ष को “रेवड़ी मॉडल” पर बोलने का मौका भी देगा।लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ चुनावी रणनीति है या वाकई में लॉन्ग-टर्म विज़न?
सियासत में करंट वही मारता है, जिसकी बिजली लोगों के घर तक पहले पहुंचे।
चुनावी मौसम में “पावर प्ले”
जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव नज़दीक आते जा रहे हैं, नीतीश कुमार का यह “बिजली ऑफर” AAP को भी कड़ी चुनौती देगा, खासकर तब जब केजरीवाल ने बिहार की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है।
125 यूनिट मुफ्त बिजली से सरकार पर कितना बोझ पड़ेगा?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ऐलान के मुताबिक:
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लाभार्थी परिवारों की संख्या: 1.67 करोड़ (यानि 16.7 मिलियन)
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हर परिवार को प्रति माह 125 यूनिट बिजली मुफ्त
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बिजली की औसत दर (सब्सिडी से पहले): ₹6.10 से ₹6.95 प्रति यूनिट (औसतन ₹6.50 मानते हैं)
अनुमानित वार्षिक खर्च का कैलकुलेशन:
प्रति परिवार मासिक खर्च = 125 यूनिट × ₹6.50 = ₹812.5
कुल परिवार × मासिक खर्च = 1.67 करोड़ × ₹812.5 = ₹13,57,87,50,000
यानि लगभग ₹1,358 करोड़ प्रति माह का खर्च
वार्षिक खर्च = ₹1,358 करोड़ × 12 = ₹16,296 करोड़/साल
लेकिन सरकार क्या कह रही है?
सरकारी आंकड़ों और मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस योजना से सरकार पर हर साल करीब ₹5,000 करोड़ का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
इसका मतलब:
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सभी 1.67 करोड़ परिवार पूरे 125 यूनिट का उपयोग नहीं करेंगे
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कुछ पहले से सब्सिडी में हैं
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राज्य सरकार ग्रेडेड या थोक दरों पर बिजली खरीदती है (जो ₹6.50 से कम भी हो सकती है)
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सौर ऊर्जा या अन्य योजनाओं से लागत धीरे-धीरे घटाई जा सकती है
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थ्योरी में खर्च = ₹16,000 करोड़ सालाना
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सरकारी प्लानिंग और यथार्थ में अनुमानित खर्च = ₹5,000 करोड़ सालाना
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ये बोझ राजकोषीय घाटे, बजट रीयल्केशन और राज्य बिजली बोर्ड की सब्सिडी से मैनेज किया जा सकता है।
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